Electricity Rate Hike Alert: प्रदेश में रहने वाले आम उपभोक्ताओं के लिए जून का महीना एक और महंगाई का तोहफा लेकर आ रहा है। इस बार सीधे बिजली बिल में बढ़ोतरी की मार पड़ने वाली है। फ्यूल सरचार्ज के नाम पर उपभोक्ताओं से 4.27 प्रतिशत तक अधिक वसूली की जाएगी, जिससे बिजली कंपनियों को करीब 390 करोड़ रुपये की अतिरिक्त कमाई होगी। यह सिर्फ एक अस्थायी वृद्धि नहीं है, बल्कि आने वाले दिनों में स्थायी टैरिफ बढ़ोतरी की भी तैयारी चल रही है। ऐसे में हर वर्ग के उपभोक्ताओं को अपनी जेब पर और भार महसूस होने वाला है।
हर महीने बदल रहा है बिजली बिल का गणित
जनवरी 2024 से बिजली कंपनियों को हर महीने फ्यूल एंड पावर परचेज एडजस्टमेंट सरचार्ज (FPPPA) स्वतः निर्धारित करने का अधिकार मिला हुआ है। इस नई व्यवस्था के तहत कंपनियां अपने मासिक खर्चों के आधार पर सरचार्ज जोड़ या घटा सकती हैं। अप्रैल में जहां 1.24 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई, वहीं मई में मामूली राहत देते हुए 2 प्रतिशत की कटौती की गई। लेकिन अब जून के लिए मार्च महीने के खर्चों को आधार बनाकर फिर से सरचार्ज बढ़ाया गया है, जो सीधे उपभोक्ताओं के मासिक बजट पर चोट करेगा।
बिजली कंपनियों को हो रही भारी कमाई, पर राहत नहीं
390 करोड़ रुपये की अतिरिक्त वसूली का मतलब यह नहीं कि यह राशि किसी खास विकास कार्य में जाएगी। यह पूरी रकम बिजली कंपनियों की जेब में जाएगी, जिनके पास पहले से ही उपभोक्ताओं के 33,122 करोड़ रुपये सरप्लस के रूप में जमा हैं। विशेषज्ञों और उपभोक्ता संगठनों का कहना है कि जब इतना बड़ा सरप्लस मौजूद है, तब फ्यूल सरचार्ज लगाना पूरी तरह से अनुचित और गैरकानूनी है। इससे न केवल उपभोक्ताओं का भरोसा टूटता है, बल्कि नियामक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े होते हैं।
स्थायी टैरिफ में भी है 30% तक बढ़ोतरी की योजना
फ्यूल सरचार्ज की यह वृद्धि तो केवल शुरुआत है। आने वाले दो से तीन महीनों में स्थायी रूप से बिजली दरों में 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी प्रस्तावित है। यह एक चिंताजनक संकेत है, क्योंकि इसका असर केवल शहरी नहीं, बल्कि ग्रामीण उपभोक्ताओं पर भी गहराई से पड़ेगा। खासकर वे परिवार जो पहले से ही महंगाई और सीमित आमदनी से जूझ रहे हैं, उनके लिए बिजली अब एक और बड़ी आर्थिक चुनौती बन जाएगी।
उपभोक्ता परिषद ने बताया गैरकानूनी और अनुचित
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इस बढ़ोतरी का कड़ा विरोध दर्ज कराया है। परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने स्पष्ट रूप से कहा कि जब कंपनियों के पास हजारों करोड़ रुपये का सरप्लस जमा है, तब सरचार्ज लगाने का कोई नैतिक या कानूनी आधार नहीं बनता। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यदि वाकई कंपनियों को खर्च निकालना था, तो उसे उपभोक्ताओं के सरप्लस खाते से घटाकर राहत दी जानी चाहिए थी। परिषद इस मुद्दे को नियामक आयोग के समक्ष पेश करने जा रही है।
आम लोगों की जिंदगी पर क्या होगा असर
बिजली दरों में यह बढ़ोतरी सिर्फ आंकड़ों की बाजीगरी नहीं है, इसका सीधा असर हर उस व्यक्ति की जिंदगी पर पड़ेगा जो महीने के अंत में बिजली बिल चुकाने को लेकर पहले ही तनाव में रहता है। एक तरफ पेट्रोल-डीजल से लेकर राशन तक महंगा हो रहा है, और दूसरी ओर अब बिजली बिल में यह अप्रत्याशित बढ़ोतरी मध्यम वर्ग और निम्न आय वर्ग के लिए और मुश्किलें पैदा करेगी। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां पहले ही बिजली की आपूर्ति अस्थिर रहती है, वहां के उपभोक्ताओं को न तो गुणवत्ता मिलती है और न ही राहत।
क्या उपभोक्ताओं को मिलेगा कोई समाधान?
इस पूरे मामले में एक सवाल सबसे बड़ा है – उपभोक्ता जाएं तो जाएं कहां? क्या सरकार और नियामक संस्थाएं इस बढ़ती लूट को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाएंगी? क्या जनता की जेब पर पड़ रहे इस बोझ का कोई विकल्प निकलेगा? जब कंपनियों के पास पहले से फंड्स मौजूद हैं, तब क्यों आम आदमी को हर बार नई कीमतों का बोझ उठाना पड़ता है? यह वो सवाल हैं जो अब केवल बहस के लिए नहीं, बल्कि ठोस जवाबों की मांग करते हैं।
आगे क्या करें आम उपभोक्ता?
ऐसे समय में जब हर महीने बिजली की दरें किसी चुपचाप बढ़ती आग की तरह जेब में सुराख कर रही हों, तो उपभोक्ताओं को एकजुट होना पड़ेगा। जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है। उपभोक्ता परिषद जैसे संगठनों का साथ देना, शिकायत दर्ज कराना, नियामक संस्थानों को ज्ञापन भेजना और सोशल मीडिया पर जनमत तैयार करना – यही वो रास्ते हैं जिनसे दबाव बनाकर बिजली कंपनियों को जवाबदेह बनाया जा सकता है।
यदि आप भी इस मुद्दे से प्रभावित हैं, तो अपने क्षेत्र के जनप्रतिनिधि से संपर्क करें और आवाज़ उठाएं। अधिक जानकारी और अपडेट्स के लिए हमारे अन्य लेख ज़रूर पढ़ें।
