हरियाणा के इतिहास में कई ऐसे स्थल छुपे हैं, जो अपने भीतर न सिर्फ स्थापत्य कला की झलक समेटे हुए हैं, बल्कि रहस्यों और लोककथाओं का ऐसा खजाना भी छुपाए हुए हैं, जो आज भी लोगों को चौंकाता है। रोहतक जिले के महम कस्बे में स्थित ‘शाहजहां की बावड़ी’ एक ऐसा ही रहस्यमयी स्थल है, जो इतिहास, संस्कृति और अफवाहों का अनोखा संगम है। यहां न सिर्फ प्राचीन जल प्रणाली का अद्भुत नमूना देखने को मिलता है, बल्कि इसके नीचे फैली रहस्यमयी सुरंगों और छुपे खजाने की कहानियां भी लोगों के मन में आज तक कौतूहल जगाती हैं।
‘चोरों की बावड़ी’ नाम के पीछे की सच्चाई
महम की इस ऐतिहासिक बावड़ी को स्थानीय लोग ‘चोरों की बावड़ी’ कहकर पुकारते हैं। यह नाम यूं ही नहीं पड़ा। इस बावड़ी से जुड़ी सबसे चर्चित लोककथा एक ‘ज्ञानी’ नामक चोर की है, जो अपने चोरी के माल को इसी बावड़ी में छुपाता था और फिर रहस्यमयी सुरंगों के रास्ते ऐसे गायब हो जाता था जैसे हवा में घुल गया हो। कहा जाता है कि उसने यहां कोई अमूल्य खजाना छुपा रखा था, जो आज तक किसी के हाथ नहीं लग सका।
क्या वाकई लाहौर तक जाती थीं सुरंगें?
इस बावड़ी की सबसे रहस्यमयी बातें इसके नीचे फैली सुरंगों को लेकर हैं। लोककथाओं के अनुसार, इन सुरंगों का विस्तार दिल्ली, हिसार और यहां तक कि लाहौर तक था। हालांकि इतिहास में इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है, लेकिन कई स्थानीय लोग आज भी मानते हैं कि ये सुरंगें किसी समय दूर-दूर तक फैली हुई थीं और इनका इस्तेमाल या तो व्यापारिक मार्गों के लिए या फिर आपातकालीन रास्तों के रूप में होता था।
मुगलकालीन स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण
शाहजहां की बावड़ी का निर्माण 1658-59 में शाहजहां के दरबारी सैदू कलाल ने करवाया था। ईंटों और कंकर पत्थरों से बनी यह बावड़ी स्थापत्य की दृष्टि से उस दौर की उन्नत सोच को दर्शाती है। इसमें कुल 101 सीढ़ियां हैं, जो तीन भागों में विभाजित होकर जलाशय तक जाती हैं। यह पूरी संरचना इस बात का प्रमाण है कि मुगल काल में जल प्रबंधन और निर्माण कला कितनी विकसित थी।
सूखे से राहत दिलाने के लिए बनी थी यह बावड़ी
इतिहासकार बताते हैं कि उस दौर में हरियाणा का यह क्षेत्र सूखे और पानी की कमी से जूझता था। ऐसे में इस बावड़ी का निर्माण एक बड़ा कदम था, जिससे न सिर्फ स्थानीय लोगों को राहत मिली बल्कि व्यापारियों और यात्रियों को भी पानी और विश्राम की सुविधा मिलती थी। यह स्थान कभी पूरे कस्बे की जीवनरेखा हुआ करता था।
यात्रियों के लिए बना था विश्राम स्थल
बावड़ी के चारों ओर बने कमरों और गलियारों का उपयोग उस समय विश्राम स्थलों के रूप में किया जाता था। जो व्यापारी और राहगीर लम्बी यात्राएं करते थे, वे यहां ठहरते, आराम करते और पानी भरकर आगे की यात्रा पर निकलते थे। उस दौर के सामाजिक ढांचे में यह स्थान एक महत्वपूर्ण कड़ी था।
बारात जो कभी लौटी ही नहीं
एक बेहद चौंकाने वाली लोककथा इस बावड़ी की सुरंगों से जुड़ी है। कहा जाता है कि एक बारात इन सुरंगों से होते हुए दिल्ली के लिए रवाना हुई थी, लेकिन वह कभी वापस नहीं लौटी। इसके बाद अंग्रेजी शासन ने इन सुरंगों को हमेशा के लिए सील करवा दिया। यह कथा आज भी स्थानीय लोगों के बीच रहस्य और भय का विषय बनी हुई है।
आज जर्जर हालत में है यह धरोहर
इतिहास और रहस्य से भरी यह बावड़ी आज बदहाली का शिकार है। संरचना का एक बड़ा हिस्सा टूट चुका है, पानी अब पीने योग्य नहीं रहा और चारों ओर घास-फूस और कूड़े का ढेर देखने को मिलता है। संरक्षण की कमी और प्रशासनिक उदासीनता ने इस धरोहर को धीरे-धीरे गुमनामी की ओर धकेल दिया है।
पर्यटन के लिहाज से अपार संभावनाएं
बावड़ी की मौजूदा हालत चाहे जैसी हो, लेकिन इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यदि सरकार और स्थानीय प्रशासन इसकी देखरेख और प्रचार-प्रसार पर ध्यान दे, तो यह स्थान न सिर्फ पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण बन सकता है, बल्कि हरियाणा के सांस्कृतिक मानचित्र पर भी एक गौरवशाली स्थान पा सकता है। यहां रिसर्च, डॉक्यूमेंट्री और हेरिटेज टूरिज्म जैसी गतिविधियों की अपार संभावनाएं हैं।
क्या आज भी कहीं छुपा है वह खजाना?
यह सवाल आज भी लोगों के मन में गूंजता है—क्या वास्तव में बावड़ी के नीचे कोई खजाना छुपा है? क्या ज्ञानी चोर की कहानी सिर्फ एक लोककथा है या उसमें कुछ सच्चाई भी है? और क्या वाकई ये सुरंगें कभी लाहौर तक जाती थीं? इन सवालों के उत्तर शायद कभी न मिलें, लेकिन यह तय है कि जब तक ये रहस्य बने रहेंगे, शाहजहां की बावड़ी लोगों के मन में जिज्ञासा जगाती रहेगी।
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