RBI Profit Explained: भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा हाल ही में केंद्र सरकार को ₹2.7 लाख करोड़ का ऐतिहासिक लाभांश देने की घोषणा ने देशभर में चर्चा छेड़ दी है। यह इतनी बड़ी रकम है कि आम आदमी के मन में स्वाभाविक सवाल उठता है—RBI को आखिर इतना पैसा आता कहां से है, और उसका मुनाफा कैसे बनता है? अगर RBI मुनाफा कमाने वाला संस्थान नहीं है, तो फिर उसकी आय के ये स्रोत क्या हैं जो सरकार को इतना बड़ा योगदान दे सकते हैं?
डॉलर की चाल से बनती है मोटी कमाई
RBI विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करता है ताकि रुपए की कीमत में स्थिरता बनी रहे। जब डॉलर की कीमत गिरती है, RBI उसे बड़ी मात्रा में खरीद लेता है। बाद में, जब डॉलर महंगा हो जाता है, तो उसे ऊंचे दाम पर बेचकर मुनाफा कमाया जाता है। यह कोई सामान्य सौदा नहीं होता—यह पूरी रणनीति और समय की मांग करता है। खासतौर पर जब रुपए की कीमत गिरती है और बाज़ार में घबराहट होती है, उस समय डॉलर की बिक्री से RBI दोहरा फायदा उठाता है—मुनाफा भी और स्थिरता भी।
सरकारी बॉन्ड से तयशुदा ब्याज की आमद
भारतीय रिज़र्व बैंक न केवल देश का केंद्रीय बैंक है, बल्कि सरकार का आधिकारिक बैंकर भी है। सरकार जब वित्तीय ज़रूरतों के लिए बाज़ार से कर्ज उठाती है, तो वह बॉन्ड जारी करती है। इन बॉन्ड्स को RBI खरीदता है और बदले में तयशुदा ब्याज प्राप्त करता है। यही ब्याज RBI की स्थायी आमदनी में से एक है। वर्ष 2024-25 में जो ₹2.7 लाख करोड़ का लाभांश सरकार को मिला है, उसमें बॉन्ड पर मिले ब्याज का अहम हिस्सा है।
करेंसी छापने से भी होता है अप्रत्यक्ष लाभ
भारत में करेंसी छापने का अधिकार केवल RBI के पास है। अब सोचिए, अगर एक ₹500 के नोट को छापने में केवल ₹3 से ₹4 की लागत आती है, लेकिन उसका मूल्य ₹500 है, तो ये अंतर सीधे RBI के खाते में आता है। इस प्रक्रिया को सीनियोरेज कहा जाता है। यह कोई नकद लाभ नहीं होता, लेकिन लंबे समय में यह लाभांश की राशि बढ़ाने में मदद करता है।
विदेशी निवेश और सोने से होती है अतिरिक्त आमदनी
RBI केवल भारतीय संपत्तियों तक सीमित नहीं रहता। वह अमेरिकी ट्रेज़री, विदेशी बॉन्ड और सोने जैसे संपत्तियों में भारी निवेश करता है। जब इन संपत्तियों की कीमतें बढ़ती हैं या उनसे ब्याज और लाभांश मिलते हैं, तो यह रकम RBI की आय में जुड़ जाती है। सोने की कीमतों में तेजी भी RBI के खजाने में इज़ाफा करती है। साल 2024 में सोने की वैश्विक कीमतों में उछाल ने रिज़र्व बैंक को अप्रत्याशित लाभ पहुंचाया।
आकस्मिक जोखिम बफर में हुआ बड़ा बदलाव
RBI अपनी कुल कमाई का एक हिस्सा आकस्मिक परिस्थितियों के लिए सुरक्षित रखता है, जिसे Contingency Risk Buffer (CRB) कहा जाता है। यह एक तरह की सुरक्षा निधि होती है, जो किसी वित्तीय संकट के समय काम आती है। वर्ष 2024-25 में इस बफर को 6.5% से बढ़ाकर 7.5% कर दिया गया है। इसका मतलब यह है कि RBI ने और अधिक सुरक्षा राशि अलग रखी, फिर भी वह सरकार को अब तक का सबसे बड़ा लाभांश देने में सक्षम रहा।
सरकार को इसका क्या फायदा होता है?
RBI से मिलने वाला लाभांश सीधे तौर पर केंद्र सरकार के बजट संतुलन में मदद करता है। इससे राजकोषीय घाटा कम होता है, यानी सरकार को कम कर्ज उठाना पड़ता है। कम कर्ज का मतलब है कि बाज़ार में ब्याज दरों पर दबाव घटता है, जिससे बैंकों को कर्ज सस्ता करने की गुंजाइश मिलती है। नतीजा? आम जनता के लिए सस्ती हो सकती हैं लोन और EMI, जिससे आर्थिक गतिविधियों को रफ्तार मिलती है।
इतनी बड़ी कमाई के पीछे कौन-सी रणनीति?
यह सवाल लाज़मी है कि RBI ने आखिर ऐसा क्या अलग किया जिससे 2024-25 में इतनी बड़ी कमाई हो पाई। इसका जवाब छिपा है बाजार की सही टाइमिंग, मुद्रा प्रबंधन की कुशलता, और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का रणनीतिक उपयोग करने में। अमेरिकी डॉलर की चाल, वैश्विक ब्याज दरों की स्थिति और घरेलू आर्थिक संकेतकों का सटीक मूल्यांकन इस सफलता के पीछे की असली ताकत रही है।
क्या आगे भी बने रहेंगे ऐसे मुनाफे?
इस साल की कमाई कई विशेष परिस्थितियों का परिणाम है। डॉलर की स्थिरता, वैश्विक निवेश से लाभ और सोने की कीमतों में उछाल बार-बार नहीं होता। लेकिन अगर RBI इसी तरह सतर्कता से काम करता रहा और वैश्विक रुझानों का लाभ उठाता रहा, तो आने वाले वर्षों में भी अच्छा लाभांश संभव है। हालांकि यह भी सच है कि ऐसा हर साल नहीं दोहराया जा सकता।
सरकार और आम जनता दोनों के लिए यह लाभांश बड़ी राहत की तरह है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक अर्थव्यवस्था कई अनिश्चितताओं से गुजर रही है।
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